Sunday, April 29, 2018
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सरकार की लुटिया डूबा तो नहीं देंगे भाजपा के बयानवीर !

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रायपुर(BW टीम)। प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 6 माह से भी कम समय बचा है। और प्रदेश  के मुख्यमंत्री स्वयं मोर्चा संभाल चुके हैं। फिर चाहे मामला लोकसुराज का हो या आने वाले समय में होने वाले विकास यात्रा का। डॉ. रमन सिंह स्वंय अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर सरकार के विकास कार्यों को जनता तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं। लेकिन इसके ठीक उलट भाजपा के बयानवीर कहीं ना कहीं प्रदेश के एक बड़े तबके को नाराज करने में लगे हुए हैं। और यह अतिशयोक्ति नहीं कही जाएगी की इसके चलते प्रदेश का बड़ा कर्मचारी वर्ग आहत और आक्रोशित है। और आने वाले चुनाव में सरकार को सबक सिखाने की बात कर्मचारियों के व्हाट्सएप्प ग्रुप में तेजी से वायरल हो रहा है। सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो नुकसान भी तय है ऐसे भी अब तक जितने भी सर्वे हुए हैं। वह साफ बता रहे हैं कि प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री से नाराज नहीं है बल्कि उनकी नाराजगी सरकार से है। जिसका सीधा सा मतलब है कि सरकार के वे अन्य जनप्रतिनिधि जो जनता से सरोकार नहीं रखते वह आने वाले दिनों में सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। साथ ही अलग-अलग मीडिया हाउस में प्रवक्ता के तौर पर जाने वाले बयानवीर भी सीधे-सीधे कर्मचारियों के निशाने पर हैं। और कहीं ना कहीं उनके चलते सरकार भी प्रदेश के एक बहुत बड़े तबके के निशाने पर आ रही है।

गैरजरूरी बयानों की फेहरिस्त होते जा रही है लंबी

चुनावी वर्ष में चाहे कोई भी प्रदेश हो वहां के कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करते ही हैं। और सरकार उनके कुछ मांगों को पूरा कर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास भी करती है छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं रहा है। और यहां भी यह सिलसिला बरसों पुराना है ऐसे भी चुनाव के आने के पहले के 4 सालों में कर्मचारियों को कोई खास सौगात नहीं मिलती और सरकार के द्वारा चुनाव के ठीक पहले जो उन्हें आश्वासन और प्रलोभन दिया गया रहता है उसे पूरा करवाने का यह मुफीद समय होता है। यही कारण है कि चुनावी वर्ष में अलग-अलग कर्मचारी संगठन अपने कई सूत्रीय मांगों को लेकर मैदान में उतरते हैं फिर चाहे वह तृतीय वर्ग कर्मचारी संगठन हो, शिक्षाकर्मी संगठन हो, आंगनबाडी संगठन हो या फिर अन्य कर्मचारी संगठन।

अभी हाल ही में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का आंदोलन खत्म हुआ है जिन्होंने एक बड़ा आंदोलन किया। लेकिन जिस तरीके से अलग-अलग मीडिया हाउस के डिबेट कार्यक्रम में सत्ताधारी पार्टी के बयानवीर उन्हें जवाब रहे थे। वह उनके गुस्से की आग में घी डालने का काम कर रहा था, कभी कोई प्रवक्ता उन्हें उनके सेवा शर्तों की याद दिलाते हुए संतुष्ट न होने की स्थिति में नौकरी छोड़ने की सलाह दे रहे थे। तो कोई उन्हें कामचोर बता रहा था। कोई उन्हें यह याद दिला रहा है कि जब आपकी नौकरी लगी थी तब आपको कितना वेतन मिलता था लेकिन सत्ता के नशे में चूर मठाधीश इस बात को भूल गए हैं कि उस दौर में महंगाई कहां थी और आज 14-15 सालों बाद महंगाई कितनी बढ़ गई है। और क्या कोई भी कर्मचारी उस वेतन में जो उसे आज से 15-20 साल पहले मिलता था अपना परिवार पाल सकता है। कोई भी समझदार व्यक्ति इसका जवाब न हीं देगा। शिक्षाकर्मियों के आंदोलन के दौरान ऐसे ही बयान जारी हुए थे। कोई पूछता था कि आखिर आपके बच्चे सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ते। हालांकि उनके पास इस बात का स्वयं जवाब नहीं था कि वह सरकार में है तो उनके बच्चे सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ते। और यह सवाल वापस पूछने पर वह तिलमिला जाते थे। इसी तरह मजदूर संघ के पदाधिकारी मोहन एंटी ने तो शिक्षाकर्मियों को मजदूर ही बता दिया था। बाद में उन्हें इसके लिए माफी भी मांगनी पड़ी थी और अपना बयान वापस लेना पड़ा था। अंत में सवाल यह है कि आखिर सरकार चुनी ही क्यों जाती है। और सरकार की भूमिका ही क्या होती है। सरकार यदि प्राइवेट कंपनी के ऑनर की तरह व्यवहार करने लगे तो फिर जनकल्याणकारी और लोकहितकारी सरकार की परिकल्पना ही समाप्त हो जाएगी। जिस तरह सत्ता के नशे में चूर कुछ प्रवक्ता बार-बार प्रदेश की जनता को दी जाने वाली सुविधाओं को एहसान की तरह जता रहे हैं वह कहीं ना कहीं सरकार की छवि पर बट्टा लगाने का काम कर रहा है, प्रदेश के मुख्यमंत्री का शालीन चेहरा और उनके नपे-तुले बोल जहां उनके विरोधियों पर भारी पड़ते हैं वही पार्टी के बयानवीरो के यह बेलगाम बोल यदि बाद में कर्मचारियों को सुविधाएं देने के बाद भी चुनाव हरा दे तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

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