Saturday, December 8, 2018
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जमीन पर संविलियन का विरोध करने वाले नेता भी लपक कर लेंगे संविलियन की सौगात ! विकल्प फॉर्म भरने का कोई नहीं दिखा रहा साहस..

झूठी सारी बातें,धोखा हर तक़सीम…

गांव से शहर तक,कड़वे सारे नीम…!!

शिक्षाकर्मियों का हाल भी कुछ ऐसा ही है ।  शिक्षाकर्मियों को उनकी मुंहमांगी मुराद संविलियन की सौगात मिल चुकी है पर इतनी विसंगतियां है कि खुलकर स्वागत भी नहीं कर पा रहे हैं और विरोध भी नही ….. शिक्षाकर्मियों  के नाम पर नेतागिरी करने वाले संगठनों ने भी अलग-अलग राह पकड़ ली है ।  बात करें यदि प्रदेश में बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले मोर्चा संचालकों की तो 3 बड़े दिग्गज संजय शर्मा, वीरेंद्र दुबे और केदार जैन शासन-प्रशासन से बात करके विसंगतियों को सुधरवना चाहते हैं  इसलिए उन्होंने किसी भी प्रकार के जमीनी हड़ताल या आंदोलन से किनारा कर लिया है ।  इधर कैबिनेट बैठक में संविलियन का प्रस्ताव पास होने के बाद मोर्चा के अन्य संचालकों के साथ मुख्यमंत्री रमन सिंह को धन्यवाद अदा करने पहुंचे दो अन्य संचालक चंद्र देव राय और विकास राजपूत ने विधानसभा घेराव तक की धमकी दे डाली है जिसका सीधा सा मतलब है कि वह जमीनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं इधर ऐन मौके पर शिक्षाकर्मी आंदोलन से दूरी बनाए रखने वाले भूपेंद्र सिंह बनाफर 26 जून को रायपुर में रैली कर चुके हैं और अब जिला स्तर पर लोगों को संगठित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं इधर नए उभरे हुए नेता इदरीश खान समेत अन्य अलग स्थापित नेताओं को कोसने और बिगुल फूंकने में लगे हुए हैं। ऐसी स्थिति में कई शिक्षाकर्मियों ने भास्कर वर्ल्ड को फोन करके कुछ सवाल खड़े किए थे जिसमें सबसे प्रमुख सवाल यह था कि जो शिक्षाकर्मी नेता आंदोलन का बिगुल फूंक रहे हैं क्या वह लाभ से वंचित शिक्षाकर्मियों का साथ देते हुए विकल्प फॉर्म भरकर संविलियन का विरोध करने की हिम्मत दिखाएंगे ?

भास्कर वर्ल्ड को भी यह प्रश्न उचित लगा क्योंकि जब संविलियन में इतनी विसंगति है और शिक्षाकर्मी नेता खुद को छले हुए शिक्षाकर्मियों के साथ बता रहे हैं तो फिर क्या वे संविलियन की सौगात लेकर खुद को सेफ रख कर अन्य की मांगों को लेकर लड़ाई करेंगे या फिर स्वयं उस दर्द को महसूस करना चाहेंगे जो संविलियन से छूट रहे शिक्षाकर्मियों को सता रहा है क्योंकि कई शिक्षाकर्मियों का यह आरोप है कि बहुत से शिक्षाकर्मी नेता अपनी जमीन मजबूत करने की रणनीति के तहत संविलियन से वंचित शिक्षाकर्मियों को उकसा रहे हैं और इसकी ओर शासन- प्रशासन ने भी इशारा किया था…. ऐसी स्थिति में हमने फिलहाल आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मोर्चा के दो संचालक विकास राजपूत और चंद्र देव राय तथा वर्ग 3 के 69 प्रतिशत शिक्षाकर्मियों का खुद को नेतृत्वकर्ता बताने वाले भूपेंद्र सिंह बनाफर तथा इदरीश खान से भी सीधी बात की और उनसे केवल एक सवाल का जवाब जानना चाहा कि क्या वह विकल्प पत्र भरकर संविलियन का विरोध करेंगे ?

लेकिन ताज्जुब की बात रही कि एक भी नेता ने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया और सभी का कहना था कि हम संविलियन का स्वागत करते हैं लेकिन विसंगतियों का विरोध है लेकिन फिर सवाल यहीं खड़ा हो गया की विसंगतियों का विरोध तो प्रदेश के अन्य संचालक और आम शिक्षाकर्मी भी कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में उनमें और दूसरों में क्या अंतर है क्योंकि चाहे छत्तीसगढ़ शिक्षक महासंघ हो यह शिक्षाकर्मी मोर्चा या फिर एकता मंच, सभी के संचालक इस बात को एक सुर में कह रहे हैं कि शिक्षाकर्मियों को जो संविलियन की सौगात दी गई है उसमें काफी विसंगतियां है खास तौर पर 8 वर्ष से कम वाले शिक्षाकर्मियों को जिस तरीके से संविलियन से वंचित किया गया है और वर्ग 3 की वेतन विसंगति और क्रमोन्नति के विषय में कोई निर्णय नहीं लिया गया है उससे शिक्षाकर्मियों में भारी नाराजगी है ।

इस मुद्दे पर  हमने जब विकास राजपूत से बात की तो उनका कहना था कि हम संविलियन का स्वागत करते हैं और इसकी विसंगति का विरोध है साथ ही साथ उन्होंने इशारों में संविलियन के विकल्प पत्र को लेकर भड़काने वालों पर निशाना साधते हुए कहा कि हम प्रदेश के किसी भी शिक्षाकर्मी को संविलियन नहीं लेने का विकल्प पत्र नहीं भरने देंगे ।  संविलियन एक बड़ी सौगात है जिसका स्वागत है लेकिन विसंगतियों को लेकर हमारी लड़ाई है ।

इस मुद्दे पर चंद्र देव राय का कहना है कि ऐसा कौन शिक्षाकर्मी होगा जो संविलियन से इंकार करेगा ,  लेकिन मध्य प्रदेश की तर्ज पर संविलियन देने की बजाय जो विसंगतिपूर्ण फैसला  लिया गया है उसका विरोध है ।

व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर लगातार सक्रिय रहने वाले इदरीश खान से जब हमने बात की तो वह भी संविलियन का स्वागत करते हुए नजर आए उनका कहना था कि संविलियन का पूरी तरह से स्वागत है और यह शिक्षाकर्मियों के लिए बड़ी सौगात है और विकल्प फॉर्म भरवाना सरकार का एक पासा है ताकि जो विरोध करना चाहते हैं वह उनके जाल में फंस जाएं ।

इधर इस मुद्दे पर 26 जून को रैली करने वाले और शिक्षाकर्मी मोर्चा के आंदोलन से खुद को दूर रखने वाले भूपेंद्र सिंह बनाफर से जब हमने बात की तो उनका कहना था कि अभी ऐसा कोई आदेश नहीं आया है लेकिन जब उनसे कहा गया कि सरकार ने यह विकल्प रखा है तो उनका कहना था कि बिना कागज देखे मैं कोई जवाब नहीं दे सकता जबकि सच्चाई यह है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में सचिव जिला शिक्षा अधिकारियों को यह स्पष्ट निर्देश दे चुके हैं कि संविलियन न लेने का विकल्प भी उपलब्ध रहेगा ।  भूपेंद्र सिंह ने 8 जनवरी और 26 जून के अपने रैली को सफल बताते हुए कहा कि लोग धीरे-धीरे उनसे जुड़ रहे हैं और उनका संगठन अब जमीन पर काम कर रहा है साथ ही उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल के इशारे पर काम न करने का संकेत भी दिया ।  लेकिन भास्कर वर्ल्ड के द्वारा कई बार सवाल पूछे जाने के बावजूद इस बात का जवाब नहीं दिया कि क्या वह संविलियन न लेने के विकल्प को स्वीकार करते हुए जमीनी लड़ाई लड़ेंगे जिसका सीधा सा मतलब था की प्रदेश का चाहे कोई भी शिक्षाकर्मी नेता क्यों न हो सभी संविलियन की सौगात लेंगे और फिर अपनी सुविधा अनुसार विरोध प्रदर्शन करेंगे। कोई अधिकारियों और नेताओं से चर्चा करके बात करेगा तो कोई इस तरीके से कार्यक्रम रखकर ,  कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार अपनी रणनीति में पूरी तरह सफल है और 8 वर्ष से कम वाले शिक्षाकर्मियों का नेतृत्वकर्ता होने के नाते कोई इस दर्द को सहना नहीं चाहता पर विरोध का बिगुल फूंकने  की बात हर कोई दोहरा रहा है  जिसे देखकर यही लगता है कि शिक्षाकर्मी नेताओं को संविलियन के लाभ से वंचित और विसंगतियों से नाराज शिक्षाकर्मियों की सहानुभूति पाने और उनका नेतृत्वकर्ता बनने की तो इच्छा है पर कोई मध्यप्रदेश की तर्ज पर यहां आर या पार की लड़ाई नहीं लड़ना चाहता।

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