दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले का नाम ज्यादातर लोग नक्सल वारदातों की वजह से जानते हैं। लेकिन ये हकीकत में ये जिला अपनी भाषा, कला, संस्कृति के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यहां की संस्कृति और रीति-रिवाज यहां के लोगों के जीवन का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।
दंतेवाड़ा का पालनार गांव अपनी खास कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। पालनार गांव देश के सबसे अग्रसर गांव में सम्मिलित नहीं है। लेकिन यहां का हर एक व्यक्ति बदलाव में हिस्सेदारी करता है। विकास के पथ पर आगे बढ़ते हुए यहां के ग्रामीण अपनी कला और संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं।
दंतेवाड़ा जिले के आदिवासी विकास की राह में सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। नक्सली प्रभावित पालनार गांव नोटबंदी के बाद कैशलेस इकोनॉमी को अपनाने वाला छत्तीसगढ़ का पहला गांव है। पालनार गांव के लोग काफी हुनरमंद हैं। यहां की महिलाएं घर के कामकाज के साथ परिवार की आमदनी बढ़ाने में अहम योगदान देती हैं।
पालनार गांव की महिलाएं घर में ढोलक पानी के लिए सुराही और मोरपंख से साज सज्जा के सामान बनाकर उन्हें बाजार में बेचती है। इससे महिलाएं आत्मनिर्भर तो बन ही रही हैं उनके घर का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त कमाई भी हो रही है।
दंतेवाड़ा के आदिवासियों का निशाना अचूक है। यहां के तीरंदाजों को तीर-कमान से निशाने लगाते देख लोग हैरत में पड़ जाते हैं।