Thursday, March 22, 2018
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बिना उपहास किए होंना चाहिए असहमत : राष्ट्रपति कोविंद

Should not be ridiculed: President kovind

नई दिल्ली। भारत के 69वें गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक ऐसे सुसभ्य राष्ट्र की चर्चा की जो दूसरों के सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना उसके विचारों से असहमत होता हो।

गणतंत्र दिवस की पूर्व वेला पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि असहमति में किसी साथी नागरिक की गरिमा व निजता का मजाक नहीं बनाया जाना चाहिए। हिंदी फिल्म ‘पद्मावत’ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की ओर इशारा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, “किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में हम असहमत हो सकते हैं। ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही भाईचारा कहते हैं। श्री राजपूत करणी सेना इस फिल्म का यह कह कर विरोध कर रही है कि इसमें राजपूत रानी पद्मावती को सम्मानजक तरीके से नहीं दिखाया गया है।

राष्ट्रपति ने कहा, “मुहल्ले, गांव और शहर के स्तर पर सजग रहने वाले नागरिकों से ही एक सजग राष्ट्र का निर्माण होता है। हम अपने पड़ोसी के निजी मामलों और अधिकारों का सम्मान करते हैं। त्योहार मनाते हुए, विरोध प्रदर्शन करते हुए या किसी और अवसर पर, हम अपने पड़ोसी की सुविधा का ध्यान रखें।”

राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन में अमीरों को परोपकारी व दानशील बनने की नसीहत दी। उन्होंने परोपकार और दान की युगों पुरानी भारतीय संस्कृति का जिक्र किया और सुविधा संपन्न लोगों से जरूरतमंदों व वंचितों के लिए त्याग करने की अपील की। कोविंद ने कहा कि 21वीं सदी में डिजिटल अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स, रॉबोटिक्स और ऑटोमेशन युग की सच्चाई है और इसे अपनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत है।

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उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा, “आइए, हम सभी अपनी तमाम सुविधाओं को एक साथ जोड़कर देखें। और इसके बाद हम अपने ही जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले, उन वंचित देशवासियों की ओर देखें, जो आज भी वहीं खड़े हैं, जहां से कभी हम सबने अपनी यात्रा शुरू की थी।”

राष्ट्रपति ने कहा, “हम सभी अपने-अपने मन में झांकें और खुद से यह सवाल करें ‘क्या उसकी जरूरत, मेरी जरूरत से ज्यादा बड़ी है? परोपकार करने और दान देने की भावना, हमारी युगों पुरानी संस्कृति का हिस्सा है। आइए, हम सब इस भावना को, और भी मजबूत बनाएं।”

उन्होंने कहा कि ‘वसुधव कुटुंबकम्’ हमारा आदर्श है, जिसका अभिप्राय है कि पूरा संसार एक परिवार है। राष्ट्रपति ने कहा कि यह आदर्श आज के तनाव और आतंकवाद के समय में भले ही अव्यावहारिक लगता हो, लेकिन भारत के लिए यही आदर्श हजारों साल से प्रेरणा का स्रोत रहा है। इस आदर्श को हमारे संवैधानिक मूल्यों में महसूस किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संस्थाओं को सिद्धांतों और मूल्यों के आधार पर चलाने और समाज से अंधविश्वास असमानता को मिटाने की जरूरत है।

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि बेटियों को बेटों की ही तरह शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं देने से खुशहाल परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण होगा। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए सरकार कानून लागू कर सकती है और नीतियां भी बना सकती है, लेकिन ऐसे कानून और नीतियां तभी कारगर होंगे, जब परिवार और समाज बेटियों की आवाज को सुनेंगे। राष्ट्रपति ने कहा, “हमारे 60 प्रतिशत से अधिक देशवासी 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। इन पर ही हमारी उम्मीदों का दारोमदार है। उन्होंने कहा, “रटंत विद्या के बजाय हमें बच्चों को सोचने और तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।”

साभार — आईएएनएस/एमजे

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