नई दिल्ली। लोरी सुन कर बच्चे सो जाते हैं। गर्भवती महिलाओं को सॉफ्ट म्यूजिक सुनने की सलाह दी जाती है। जिससे कोख में भी बच्चे को आराम मिल सके। संगीत के इस असर को देखते हुए अब समय से पहले जन्मे बच्चों के इलाज में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
ज्यूरिख की यूनिवर्सिटी में तय समय से तीन महीने पहले पैदा हुई एक बच्ची मथिल्डा पर रिसर्च चल रही हैं। रिसर्चर जानना चाहते हैं कि क्या संगीत उसके विकास में मदद कर सकता है।
जब फ्रीडरिके गुनगुनाती हैं तो दिखता है कि इससे बच्ची को सुकून मिलता है, वह हाथ उठाती है, और आंखें खोलती है। रिसर्चर अपनी थ्योरी को 60 बच्चों पर परख रहे हैं। 30 बच्चों के साथ म्यूजिक थेरेपी और 30 बच्चों के साथ बिना म्यूजिक वाली थेरेपी।
रिसर्च के दौरान दिमाग में चलने वाली गतिविधि को मॉनी़टर पर देखा जा सकता है। साउंड प्रूफ कैबिन में एक महिला को संगीतकार विवाल्दी की धुन फोर सीजंस सुनाई गई। इस धुन को सुनकर लुत्स यैंके को बॉस्टन में गुजारे अपने पतझड़ के दिन याद आ गए। जंगल में लंबी सैर पर उन्हें यह धुन सुननी पसंद है।
वह देखना चाहते हैं कि जिन लोगों का इस धुन के साथ भावनात्मक रिश्ता नहीं है, उन पर यह कैसा असर करती है। रिकॉर्ड किए गए इलेक्ट्रिक सिग्नल के आधार पर यैंके मॉनीटर में मस्तिष्क की गतिविधि को देख सकते हैं। यैंके ने बताया, “अगर मैं इसकी तुलना अपने दिमाग की गतिविधि से करूं तो कुछ समानताएं हैं, लेकिन कुछ अंतर भी हैं। मिसाल के तौर पर, दोनों ही मामलों में न सिर्फ ऑडिटोरी कॉरटेक्स यानी श्रवण संबंधी हिस्से सक्रिय हैं, बल्कि वे हिस्से भी सक्रिय हैं जिनकी आम तौर पर ध्वनि को समझने में भूमिका नहीं होती। लेकिन मेरे मामले में यह ज्यादा स्पष्ट है।”
संगीत सुनने का हमारे दिमाग पर स्पष्ट असर होता है तो फिर संगीत बजाने का क्या असर होगा। यैंके संगीतकारों पर किए अपने एक शोध में इसका सवाल का जवाब तलाश चुके हैं और उन्होंने पाया कि साज बजाने से हमारी जानने समझने की क्षमता बेहतर होती है।