रायपुर। मध्य प्रदेश में शिक्षाकर्मियो के संविलियन की घोषणा कर के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला है कि विपक्षी पार्टी चारों खाने चित हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष समेत तमाम कांग्रेसी नेता डैमेज कंट्रोल में जुटे हुए हैं। प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने तो इसे केवल सियासी घोषणा बता दिया है। पर मीडिया और जनता समेत तमाम अध्यापक इस बात को जानते हैं कि इस घोषणा का क्या महत्व है। भले ही आदेश निकलने में कुछ माह लग जाए, कुछ विसंगतियां हो जाए। जिसमें आगे चलकर सुधार कर लिया जाए पर मूल रूप से वहां के शिक्षाकर्मियों की मांग शिवराज सिंह ने पूरी तरह मान ली है। निश्चित तौर पर आगे कुछ मुद्दों को लेकर गतिरोध बन सकता है पर वह भी मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद खत्म हो जाएगा इसकी पूरी संभावना है। ऐसे भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जो घोषणा की है उसके अनुसार अध्यापकों की सभी मांगे मान ली गई है इसलिए ज्यादा दिक्कत आने की गुंजाइश भी नहीं है। मध्य प्रदेश में संविलियन की जैसे ही घोषणा हुई छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मियों में भी उम्मीद और उत्साह की लहर दौड़ गई।
छत्तीसगढ़ में भी फिर से उठने लगी संविलियन की मांग
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की घोषणा ने छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मियों के लिए भी संजीवनी बूटी का काम किया है। 15 दिनों के आंदोलन के बाद शिक्षाकर्मी शून्य पर आंदोलन से वापस लौट गए थे और सरकार ने उनकी समस्याओं के निदान के लिए कमेटी बनाने की घोषणा कर दी थी। जिसमें से केवल एक कमेटी का आदेश अभी तक जारी हुआ है और वह भी पदोन्नति, स्थानांतरण जैसे छोटे मुद्दे को लेकर है। सातवां वेतनमान, क्रमोन्नति, 8 वर्ष के सेवा बंधन को समाप्त करने जैसे मुद्दों के लिए अभी कमेटी की घोषणा ही नहीं हुई है और यही वे मुख्य बिंदु है जो सभी शिक्षाकर्मियों को एक साथ बड़ा लाभ पहुंचाएंगे। शिक्षाकर्मी भी दम साधे हुए सरकार की हर घोषणा और आदेश पर नजर बनाए रखे हुए हैं और धीरे-धीरे 3 महीने गुजरने का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि सरकार ने शिक्षाकर्मियों को 3 महीने के भीतर कमेटी के जरिए फैसला लेने की बात कही थी। इसलिए शिक्षाकर्मी भी चाहते थे कि 3 महीने तक सरकार के रुख का इंतजार कर ले। लेकिन जैसे ही मध्यप्रदेश में संविलियन की घोषणा हुई वैसे ही शिक्षाकर्मियों में अपने प्रमुख मांग को लेकर फिर से जोश और जुनून दिखाई देने लगा है। और वह अब सोशल मीडिया के जरिए सवाल पूछ रहे हैं कि जब संविलियन संभव ही नहीं है जैसा कि यहां प्रदेश के नेता और अधिकारी कहते फिरते हैं। तो मध्यप्रदेश में आखिर यह हुआ कैसे? गौरतलब है कि पूरे चुनाव के दौरान अधिकारी और नेता यह बयान देते फिर रहे थे की शिक्षाकर्मी पंचायत के कर्मचारी हैं और उनका मूल शिक्षा विभाग में संविलियन संभव ही नहीं है। और इसमें संवैधानिक दिक्कत है लेकिन जिस तरीके से शिवराज सिंह ने मास्टर स्ट्रोक खेला है। उसके बाद अब यहां के अधिकारियों और नेताओं को भी यह जवाब देना होगा कि आखिर जब मातृ राज्य में यह संभव है तो यहां क्यों नहीं ?
सरकार और शिक्षाकर्मियों के बीच फिर बढ़ेगी टकराहट
मध्य प्रदेश की घोषणा के बाद अब छत्तीसगढ़ में संविलियन ही प्रमुख मांग बन जाएगा। यह तय हो चुका है और अब शिक्षाकर्मी किसी भी कीमत पर इस मांग से पीछे नहीं हटेंगे। क्योंकि उन्हें मध्य प्रदेश का उदाहरण रखने में आसानी होगी, इधर सरकार भी सही समय पर सही फैसला ले सकती है। दरअसल प्रदेश की रमन सरकार भी शिक्षाकर्मियों के हित में फैसला लेना चाहती है। और समय-समय पर उन्होंने इसका संकेत भी दिया है। लेकिन इस बार जिस तरीके से शिक्षाकर्मी आंदोलन के पहले के घटनाक्रम हुए उसने सरकार को अंदर तक नाराज कर दिया, प्रदेश के मुखिया के साथ बैठक के बाद जिस तरीके से शिक्षाकर्मी नेताओं ने बाहर आकर आंदोलन की घोषणा की, उसने सरकार के गुस्से की आग में घी डालने का काम किया है। दरअसल इस बार पूरा मसला अधिकारियों के चलते उलझ कर रह गया। कभी भी किसी भी संगठन की पहले दौर की बात मुख्यमंत्री से नहीं होती बल्कि मुख्यमंत्री तो विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों को बैठा कर सामंजस्य स्थापित करने की भूमिका अदा करते हैं। लेकिन इस बार इसके ठीक उलट सचिव स्तरीय वार्ता के बाद शिक्षाकर्मी संगठनों को मुख्यमंत्री से वार्ता के लिए बैठा दिया गया और वहां केवल और केवल कमेटी बनाने की बात हुई और किसी भी प्रकार की घोषणा से साफ इनकार कर दिया गया। जबकि शिक्षाकर्मियों को सचिव स्तरीय वार्ता में इस बात का आश्वासन दिया गया था कि संविलियन छोड़कर शेष अन्य मांगों पर सहमति है। बस यहीं से बात बिगड़ गई। शिक्षाकर्मी नेताओं के सामने भी यह प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया कि आखिर वह बाहर जाकर जवाब क्या देंगे क्योंकि हर बार उन पर आंदोलन बेच देने का आरोप लग जाता है। इसलिए शिक्षाकर्मियों ने अपने हक की लड़ाई लड़ने की बात सोची लेकिन सरकार ने भी इस बार शिक्षाकर्मियों के लिए कुछ खास ही सोच रखा था और इसी के तहत सरकार के प्रमुख सिपहसालार ने पूरी रणनीति तैयार कर शिक्षाकर्मियों के आंदोलन को कुचल कर रख दिया। यही नहीं, कांग्रेस की भी रणनीति धरी की धरी रह गई लेकिन अब एक बार फिर से माहौल सरकार के खिलाफ धीरे-धीरे तैयार होने लगा है ।
छत्तीसगढ़ में भी हो सकती है शिक्षाकर्मियों के संविलियन की घोषणा
मध्य प्रदेश के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी शिक्षाकर्मियों के संविलियन की घोषणा की संभावनाएं बढ़ गई हैं हालांकि इसमें अभी काफी समय है पर यह भी तय है की रमन सरकार भी शिक्षाकर्मियों के हित में कुछ बड़े फैसले लेगी और इसमें संविलियन की प्रमुख भूमिका हो सकती है, दरअसल मुख्यमंत्री रमन सिंह की गिनती भी बड़े फैसले लेने वाले मुख्यमंत्रियों में होती है और वह भी समय के अनुसार फैसला लेने के लिए जाने जाते हैं । 2012-13 के आंदोलन के बाद भी शिक्षाकर्मी कुछ इसी बार की तरह सरकार को कोसते हुए मैदान से बाहर शून्य पर ही गए थे पर बाद में मुख्यमंत्री ने एक झटके में उनके वेतन को इतना अधिक बढ़ा दिया था जिसकी कल्पना शिक्षाकर्मियो ने स्वयं नहीं की थी और इसके बाद शिक्षाकर्मियों ने सत्ता की चाबी एक बार फिर भाजपा सरकार को ही सौंप दी थी। इस बार भी शून्य में ही हड़ताल की वापसी हुई है और पिछले बार की तरह ही शिक्षाकर्मी सरकार से रुष्ट हैं सरकार भी इस बात को भली भांति जानती है कि शिक्षाकर्मी चुनाव में कितना बड़ा रोल अदा करेंगे इसलिए कुछ महीनों बाद सरकार इनके विषय में जरूर बड़ा फैसला लेगी इसके पहले दोनों तरफ से रस्साकशी होने की प्रबल संभावना है ताकि कितने अधिक और कितने कम में बात बन सके यह आंका जा सके ।
मध्य प्रदेश के निर्णय के बाद क्या कहना है शिक्षाकर्मी नेताओं का…
छत्तीसगढ़ पंचायत एवं नगरी निकाय मोर्चा के प्रदेश संचालक संजय शर्मा ने कहा कि संविलियन हमारी प्रमुख मांग है जिसे लेकर हमने आंदोलन किया था और हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह भी मध्यप्रदेश सरकार की तर्ज पर यहां पर भी शिक्षाकर्मियों के हित में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए प्रदेश के 1 लाख 80 हजार शिक्षाकर्मियों का शासकीय शिक्षकों के समान वेतनमान और सेवा शर्तों के साथ मूल शिक्षा विभाग में संविलियन करने का फैसला जल्द से जल्द लेगी।
छत्तीसगढ़ पंचायत एवं नगरीय निकाय मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी विवेक दुबे ने बताया कि संविलियन हमारी पहली और प्रमुख मांग है इस मांग के पूरा होने के साथ ही हमारी तमाम मांगे एक साथ पूरी हो जाएंगी इसलिए हम चाहते हैं कि मध्य प्रदेश के सामान ही हमारे मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी एक लाख 80 हजार शिक्षाकर्मी परिवार के हितों का ध्यान रखते हुए हमारा सेवा हस्तांतरण भी मूल शिक्षा विभाग में कर दें ताकि शिक्षक और शिक्षाकर्मी का भेद हमेशा हमेशा के लिए मिट जाए और प्रदेश की शिक्षा में गुणवत्ता आ सके।