Tuesday, February 6, 2018
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श्रीराम व रामचरित मानस आज भी प्रांसगिक: मंत्री अजय चंद्राकर, पचपेड़ी, भेंडरवानी, भठेली, सिंगदेही के मानस कार्यक्रम में हुए शामिल

Shriram and Ramcharit Manas are still relevant, Panchayam minister ajay chandrakar

कुरूद। श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पूर्व कालक्रम में थे। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम प्रजातंत्र है। ये कहना है छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्रकार का। मौका था पचपेड़ी गांव में आयोजित मानस सम्मेलन समारोह में। जहां पर मंत्री चंद्राकर मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुए।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर ने शनिवार को पचपेड़ी गांव, भेंडरवानी, भठेली और सिंगदेही में आयोजित मानस सम्मेलन में बतौर मुख्यातिथि की आसन्दी में बैठकर लोगों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भगवान राम की कार्यप्रणाली को समझने से पहले राम को समझना होगा। श्रीराम यानी संस्कृति, धर्म, राष्ट्रीयता और पराक्रम। एक आम आदमी बनकर जीवनयापन करने के लिए जो तत्व, आदर्श, नियम और धारणा जरूरी होती है उनके सामंजस्य का नाम श्रीराम है। उनके हर कार्य मे मूल्यों की स्थापना हुई है जिसकी प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी।

इस अवसर पर प्रमुख रूप से जनपद अध्यक्ष पूर्णिमा राम स्वरूप साहू, जनपद उपाध्यक्ष छत्रपाल बैस, भाजपा नेता रामगोपाल देवांगन, सतीश जैन, हरखचन्द जैन, आनंद यदु, गणेश साहू, चूड़ामणि साहू, संतोष यादव, झम्मन साहू, रामकृष्ण नेताम, गौतम जैन के अलावा मानस प्रचार समिति के कार्यकर्तागण व बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे।

Shriram and Ramcharit Manas are still relevant

इससे पहले उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद जी से प्रदेश व क्षेत्र के खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगी। मंत्री अजय चंद्राकर सर्वप्रथम पचपेड़ी गांव पहुंचे। वहां उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि नर से नारायण कैसे बना जाए। यह प्रभु राम के जीवन से सीखा जा सकता है। एक तरफ उनका आदर्श हमारे मन को जीवन की ऊंचाइयों पर पहुंचाता है, वहीं दूसरी तरफ उनकी नैतिकता मानव मन को सकारात्मक ऊर्जा देती है। उनका हर एक कार्य हमारे विवेक को जगाता है और हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है।

वहीं भेंडरवानी व भठेली के मानस कार्यक्रम में भी शिरकत की। जहां कैबिनेट मंत्री ने श्रोता समाज को राम के आदर्शों का बखान करते हुए कहा कि आपस में भाईचारा, रिश्तों को सहेजने की कला और मानव कल्याण किस प्रकार किया जाता है। इसकी श्रेष्ठतम उदाहरण रामचरितमानस में श्रीराम व उनकी संपूर्ण कार्यशैली से समझी जा सकती है। प्रत्येक युग की यह चाह रही है कि रामराज्य स्थापित हो। हमारे देश में रामराज्य स्थापित करने की कल्पना इसीलिए की थी कि श्रीराम न्याय, समानता और बंधुत्व की भावना के कारण रामराज्य के दाता हैं। देश के नागरिक नैतिक, ईमानदार और न्यायप्रिय बनें। जिस देश के नागरिकों में ये गुण होंगे, वहां रामराज्य स्थापित होगा ही। अंत मे उन्होंने समाजिक सद्भाव बनाये रख समाज को नशा व अस्वच्छता के कलंक से मुक्त करने परस्पर सहयोग करने का आग्रह किया।

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