हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। हमारे यहां गाय की पूजा होती है। कई बहनें कोकिला-व्रत करती हैं। कोयल के दर्शन हो अथवा उसका स्वर कान पर पड़े तब ही भोजन लेना, ऐसा यह व्रत है। हमारे यहाँ वृषभोत्सव के दिन बैल का पूजन किया जाता है। वट-सावित्री जैसे व्रत में बरगद की पूजा होती है, परन्तु नाग पंचमी जैसे दिन नाग का पूजन जब हम करते हैं, तब तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्टा पर पहुंच जाती है।
नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है।
पूजा का विधान:-हिंदु धर्म में नाग को देवता का रूप माना जाता है और उनकी पूजा का विधान है. दरअसल, नाग को आदि देव भगवान शिव शंकर के गले का हार और सृष्टि के पालनकर्ता हरि विष्णु की शैय्या माना जाता है. इसके अलावा नागों का लोगों के जीवन से भी नाता है. सावन के महीने में हमेशा जमकर बारिश होती है और इस वजह से नाग जमीन से निकलकर बाहर आ जाते हैं. माना जाता है कि नाग देवता को दूध पिलाया जाए और उनकी पूजा की जाए तो वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. यही नहीं कुंडली दोष दूर करने के लिए भी नाग पंचमी का अत्यधिक महत्व है.
जब कुंडली में सारे ग्रह राहु-केतु के बीच में आ जाते हैं तो जातक के कालसर्प दोष लगता है। जिस इंसान की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसे पारिवारिक जीवन से लेकर व्यापार, नौकरी क्षेत्र में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नागपंचमी का दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिए सर्वोत्तम माना गया है।