रायपुर(मनोज कुमार साहू)। आखिरकार सरकार अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हो गई है और भले ही ऐसे सभी संगठनों के सदस्यों की कुल संख्या प्रदेश के पूरे शिक्षाकर्मियों की संख्या का 5 या 10% ही हो पर वह खेमा पूरी तरह से सरकार और प्रशासन के साथ खड़ा है और यह मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली बैठक के बाद भी दिखाई पड़ा।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी को 3 माह की समय सीमा के बाद एक एक माह के दो एक्सटेंशन मिलाकर लगभग 5 महीने बीत चुके हैं और कल की बैठक के बाद जब शिक्षाकर्मी संघ के बड़े पदाधिकारी बाहर आए और मीडिया ने सवाल दागा तो छत्तीसगढ़ शिक्षक महासंघ और एकता मंच ने बैठक को पूरी तरह सफल बताया। साथ ही इस बात का भी खुलासा किया की कमेटी अब मध्यप्रदेश के दौरे पर जाएगी जिसे सुनकर मंत्रालय के बाहर शिक्षाकर्मी नेताओं के इंतजार में कई घंटों से खड़े पत्रकार भी चौक गए। क्योंकि जिन शिक्षाकर्मी नेताओं से स्वाभाविक तौर पर 5 महीने के लंबे समय के बाद भी रिपोर्ट न सौपें जाने को लेकर शासन-प्रशासन के खिलाफ आक्रोश की उम्मीद थी, वह प्रदेशभर के रिपोर्टरों को इस तरीके से बयान दे रहे थे मानो मुख्य सचिव की बैठक से कोई बड़ी सौगात लेकर निकले हो। लेकिन जैसे-जैसे पत्रकार सवाल पूछते गए और एकता मंच और छत्तीसगढ़ शिक्षक महासंघ के पदाधिकारी जवाब देते रहे और शासन और प्रशासन की तारीफ करते रहे उसके बाद पत्रकारों के बीच भी यह चर्चा का विषय रहा की सरकार आखिरकार अपनी रणनीति में कामयाब रही। क्योंकि बैठक से पूरी तरह खाली हाथ लौटने के बावजूद और आगे के किसी भी निर्णय के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं मिलने के बाद भी जिस तरीके से पदाधिकारी शासन-प्रशासन की तारीफ कर रहे थे उससे यह साबित हो चुका था कि यह धड़ा सरकार के पक्ष में खड़ा है और जो भी संगठन अब सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलेगा वह इसके विरोध में उतर जायेंगे ।
69 प्रतिशत शिक्षाकर्मियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले संगठन का हास्यास्पद पोस्ट
शिक्षाकर्मी पदाधिकारियों का सरकार के पक्ष में बयान देने का सिलसिला यही नहीं रुका खुद को हर प्रेस विज्ञप्ति में प्रदेश के 69 प्रतिशत शिक्षाकर्मियों यानी वर्ग 3 का असली प्रतिनिधित्वकर्ता बताने वाले पंचायत नगरीय निकाय सहायक शिक्षक कल्याण संघ जिस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र बनाफर ने भी मीटिंग में हिस्सा लिया था के प्रदेश प्रवक्ता अखिलेश शर्मा ने फेसबुक पर पोस्ट डालते हुए दावा किया कि उनके ही संगठन ने मुख्य सचिव से मध्यप्रदेश मॉडल का अध्ययन करने की गुजारिश की है जिसके बाद मुख्य सचिव ने एक कमेटी मध्य प्रदेश भेजने का ऐलान किया है। ताज्जुब की बात है कि एक पदाधिकारी जो स्वयं को शिक्षाकर्मियों के हितैषी बताते हैं उन्होंने स्वयं ही प्रशासन को ऐसी सलाह दे डाली जिससे सरकार को समय टालने का और बड़ा मौका आसानी से मिल जाए, यह हास्यास्पद इसलिए और भी है क्योंकि मध्यप्रदेश में केवल घोषणा हुई है। न तो किसी प्रकार की कोई नीति तैयार हुई है और न ही किसी प्रकार का मॉडल तैयार करते हुए कोई आदेश जारी किया गया है तो आखिरकार कमेटी वहां जाकर अध्ययन किस बात का करेगी, इससे बेहतर तो सरकार यह ऐलान कर सकती थी की मध्यप्रदेश में घोषणा के बाद ही आदेश का अवलोकन कर यहां निर्णय लिया जाएगा जैसा कि होने की संभावना भी है शिक्षाकर्मी संघ के द्वारा इस प्रकार की मांग करना या दावा करना समझ से परे है की मीटिंग में वह हिस्सा संविलियन के लिए बेताब शिक्षाकर्मियों की तरफ से ले रहे थे या सरकार की तरफ से।
मीटिंग खत्म होते ही दो धड़ों में नजर आए शिक्षाकर्मी
जैसे ही मीटिंग खत्म हुई उसके काफी समय बाद सरकार के खिलाफ खड़े होने वाले शिक्षाकर्मी मोर्चा के पदाधिकारी बाहर निकलें और आते ही उन्होंने कमेटी के मध्यप्रदेश जाने के निर्णय पर सवाल उठा दिए और महापंचायत की घोषणा कर दी साथ ही कमेटी की लेटलतीफी से नाराज मोर्चा के पदाधिकारी और सदस्यों ने शासन प्रशासन और सरकार का साथ देने वाले शिक्षाकर्मी संघ के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई और घूम-घूमकर नारे लगाते रहे । इसके बाद भी सोशल मीडिया में सरकार का साथ देने वाले जहां सरकार के निर्णय लेने में लेटलतीफी को छोड़कर मोर्चा पर उंगली उठाते रहे वही अधिकांश शिक्षाकर्मी सरकार को आने वाले चुनाव में सबक सिखाने की बात लिखते रहें बहरहाल देखना होगा कि सरकार ने जिन संगठनों को अप्रत्यक्ष रूप से अपने पाले में कर लिया है वह आने वाले समय में सरकार के लिए कितने मददगार साबित हो पाते हैं या फिर आंदोलन की तरह ही इनकी सहभागिता 5% ही रह जाएगी जैसा कि पूर्व में भी सरकार को झटका लग चुका है।