रायपुर। छत्तीसगढ़ के लालगढ़ में जहां जवान हर रोज अपने कतरे-कतरे खून का बलिदान देकर आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा के लिए तटस्थ हैं। वहीं दूसरी ओर जंगलों के कथित संरक्षक जंगल में मंगल करने में व्यस्त नजर आते हैं। यहीं वजह है कि वन विभाग के अधिकारी आम जनता के पैसे का दुरुपयोग करते नजर आते है।
दरअसल यह मामला वर्ष 2016 में सुकमा जिले से प्रकाश में आया था। जहां सुकमा डीएफओ राजेश चंदेल ने अपने सरकारी आवास में आलीशान स्विमिंग पूल जो लगभग 70लाख रुपये से निर्मित था, जिसको लेकर सुकमा देश भर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ था।
डीएफओ राजेश चंदेले के सरकारी बंगले की तस्वीरे सामने आने के पहले आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की टीम ने उनके सरकारी बंगले और पैतृक निवास में छापे मारे कार्रवाई कर पांच करोड़ से अधिक की संपत्ति, नकद, आभूषण बरामद किया था।
जिसके बाद से ही चंदेल पर जांच चल रही है जिसे लगभग डेढ़ साल पूरे हो चुके है लेकिन जांच अभी तक पूरी नही हुई है। वही पिछले डेढ़ साल से चंदेल राजधानी में वन प्रबंधन सूचना प्रणाली में कार्यरत है।
वर्ष 2016 के तत्कालीन सुकमा डीएफओ राजेश चंदेले पर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की कार्रवाई के बाद भी उसके खिलाफ चार्जशीट ही फाइल नहीं की गई है। जो कि काफी चौकाने वाली बात लगती है।
इस मामले के शिकायतकर्ता कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी का कहना है कि जहाँ एक ओर मोदी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करती है, वहीं दूसरी ओर वास्तविकता कुछ और ही कहती है। वनमंडलाधिकारी राजेश चंदेले के पास आय से अधिक 5 करोड़ की संपत्ति बरामद हुई है और उनके सुकमा के सरकारी निवास में उनके द्वारा 70 लाख रुपये से अधिक की लागत का स्वीमिंग पुल बनाया गया है।
आज भी उस स्वीमिंग पुल का उपयोग रमन सरकार के भ्रष्ट अधिकारी अनवरत कर रहे है। इस भ्रष्टाचार पर मोदी और रमन सरकार ने चुप्पी क्यों साध रखी है। आखिरकार इस मामले में इतनी उदासीनता क्यों दिखाई जा रही है। ऐसे में कुछ कह पाना समझ से परे ही लगता है।