नई दिल्ली। अखिल भारतीय किसान संघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए पूछा है कि क्या यही अच्छे दिन हैं?
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि बजट में किसानों के लिए कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि केवल सब्जबाग दिखाकर लोगों को दिग्भ्रमित करने का काम किया जा रहा है। यह सरकार किसान विरोधी है और ग्रामीण विकास की वादे तथा दावे खोखले हैं।
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि बजट में कृषि ऋण में 11 लाख करोड़ का इजाफा करने की सरकार ने घोषणा करते हुए वाहवाही लूटने की कोशिश कर रही है। जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि इस घोषणा का लाभ लघु व सीमांत किसानों को मिलने के बजाय बड़े किसानों व कृषि व्यवसाय से संलग्न लोगों को होगा।
वैसे तो ऋण सीमा बढ़ाने से किसानों का भला होने के बजाय इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। किसान कर्ज के मकड़जाल में उलझ जाते हैं और अंततः आत्महत्या की कगार पर खड़े हो जाते हैं।
वहीं जहां किसानों को उनके उपज की लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात कही गई है। लेकिन जब लागत ही सटीक रूप से तय नहीं हो पाती है तब न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात तो हवा हवाई ही लगती है। एक बात और यह उपज की खरीद भी अगले वर्ष से होगी यानि कि अभी तुरंत किसानों को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है।
दूसरी बात की सरकार ने इस बजट में 42 फूड पार्क बनाने की घोषणा की है। जबकि बीते वर्ष के बजट में जो 35 फूड पार्क बनाने की घोषणा की गई थी, वह अभी भी आधा-अधूरा ही है। ऐसे में घोषणा केवल लोकलुभावन ही है और कुछ नहीं।
सरकार की गंभीरता का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के लिए दो सौ करोड़ और स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए दो लाख चालीस हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि देश की 68.84 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है तथा उनकी आजीविका में लघु व कुटीर उद्योगों का काफी महत्व है। ऐसे में दो सौ करोड़ रुपये इस क्षेत्र के लिए नकाफी ही लगती है। फिर ऐसी स्थिति में ग्रामीणों का पलायन होगा और खेती-किसानी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
वित्तमंत्री ने खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित की है। जब कि प्रतिवर्ष खाद्य प्रसंस्करण के अभाव में 92 हजार करोड़ रुपये मूल्य के फल और सब्जियां या तो सड़ जाती है या फिर फेंक दी जाती है।
ऐस ही कुछ सिंचाई को लेकर भी है जहाँ इसके लिए कोई दूरगामी योजना नहीं दिखी। जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात की जा रही है लेकिन रासायनिक खाद के मद की कितनी राशि को जैविक खेती के लिए हस्तांतरित किया जाएगा, इस पर कोई स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है।
वहीं जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया है। ऐसे में जैविक खेती को बढ़ावा कैसे मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल है। अगर इस सरकार की कृषि और किसानों की प्रति इतनी ही गंभीरता और संवेदना होती तो वह न सिर्फ आंकड़ों में होती बल्कि यथार्थ मे भी होती।
फिलहाल तो मौजूदा स्थिति यह है कि सरकार वित्त वर्ष 2018-19 में कृषि विकास दर 4.1 फीसदी तक होने का दावा कर रही थी। लेकिन कृषि विकास दर 2.1 फीसदी ही रहा।
स्वास्थ्य बीमा के लिए 50 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की बुनियादी ढांचे की स्थिति बदहाल है। तो फिर ऐसे में यह ग्रामीणों के लिए कम और बीमा कंपनियों की हितों को ज्यादा लाभ पहुंचायेगा।
केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया यह बजट कृषि व किसानों के लिए हमेश की तरह निराशाजनक ही रहा है। अगर सरकार इससे संबंधित हितधारकों साथ विचार विनिमय कर बजट के प्रारूप को अंतिम रूप देती तो निश्चित रूप से परिणाम अलग व सकारात्मक हो सकता था।
देश में कृषि विकास व किसानों की बदहाली के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार से हैं : —
— 1) कृषि बजट तैयार करने के पूर्व किसानों से सुझाव लिया जाना चाहिए था। सरकार किसानों के नाम पर उन लोगों के सुझावों को वरियता देती है, जो टीवी के परदे पर बहस करते दिखते है। लेकिन वास्तव में जो खेती किसानी में संलग्न है, उनसे उनके दुख दर्द को सुना जाना चाहिए था।
— 2) इस बजट में 2400 करोड़ रुपये आवंटित किया गया, जो कि नकाफी है।
— 3) जल संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जब कि भू-जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है।
— 4) बड़े किसान तो मशीनों का उपयोग कर खेती कर रहे हैं। लेकिन छोटे किसानों को भी मशीनों के उपयोग के लिए कम लागत वाली मशीन विकसित किये जाने चाहिए।
— 5) सुखा झेल रहे किसानों की भरपायी कर्जे से नहीं की जा सकती है। इसके लिए सरकार ने कोई ठोस उपाय की जाने चाहिए थे जो कि इस बजट में नहीं दिखा।
— 6) किसानों को कर्ज के मकड़जाल से निकालने की सरकार का रुख साफ नहीं दिख रहा है। बजट केवल चुनावी नफा-नुकसान को देख कर तैयार किया गया है। जबकि इसके लिए दूरगामी योजनाएं बनाएं जाने की आवश्यकता थी।
— 7) आगामी 50 वर्षों की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर कृषि नीति बनाने की जरूरत है। जिसे कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके। इसके साथ-साथ किसानों स्थिति में सकारात्मक सुधार हो सकेगा।
फिलहाल तो मौजूदा बजट में किसानों की फसल लागत का डेढ़ गुना देने की बात सिर्फ शिगूफा ही दिखता है। इस बजट से किसान अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा है। ऐसे में यदि कुल मिला कर यह कहा जाय कि इस बजट को देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में कम तथा वोटरों को लुभाने में अपनी अहम भूमिका निभाने के मद्देनजर लाया गया है। तो शायद कोई गलत नहीं होगा।